BHOPAL. कुर्सी भी कितनी जालिम सी बला है। जिसके लिए कभी अपने बेगाने बन जाते हैं तो कभी बेगानों को अपना बनाने के लिए दिन रात एक कर दिए जाते हैं। मध्यप्रदेश की सियासत में भी कुर्सी कुछ ऐसा ही नाच नचा रही है। कुछ दिन पहले बागियों के नाम पर दुहाई देते हुए कांग्रेस बीजेपी का मूड कुछ यूं था कि दोस्त दोस्त न रहा। और, जब वोटिंग हो चुकी है नतीजों का दिन नजदीक है तो चुनावी धड़कन से एक ही आवाज आ रही है ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे। मध्यप्रदेश के अलग-अलग चुनावी समीकरण की वजह से हंग एसेंबली यानी त्रिशंकु विधानसभा की संभावना भी नजर आ रही हैं। इन हालातों को भांपते हुए ही राजनीतिक दलों ने अपना रुख बदल लिया है।
हालात ऐसे न बन जाएं कि पार्टियां बागियों के पीछे दौड़ती नजर आएं
मध्यप्रदेश की चुनावी हवा का रुख बागियो की ओर है। ये हालात ठीक ऐसे हैं कि पहले नेता पार्टियों के पीछे भाग रहे थे कि उन्हें टिकट मिल जाए। पार्टी नहीं मानी, वो दूसरे दलों से या निर्दलीय मैदान में उतरे। अब अगर जीत गए और पार्टी को सरकार बनाने के लिए संख्या कम पड़ी तो तस्वीर ठीक उल्टी होगी। अब पार्टियां उन्हीं बागियों के पीछे दौड़ती नजर आएंगी। ऐसे हालात तब बनेंगे जब प्रदेश में किसी एक दल को बहुमत न मिले या मिले भी तो संख्या जादुई आंकड़े के इतने नजदीक हो कि सरकार गिरना बहुत आसान हो जाए। इससे बचने के लिए कांग्रेस और बीजेपी ज्यादा से ज्यादा संख्या में विजयी प्रत्याशी को खुद से जोड़ने की कोशिश करेगी। ये माना जा रहा है कि इन हालातों में बागियों की बल्ले-बल्ले होना तय है।
...तो बागियों की बल्ले बल्ले कैसे होगी और वो कौन बागी हैं जो किसी भी दल के लिए बेशकीमती साबित हो सकते हैं। इस पर भी बात करेंगे। पहले आपको बताते हैं कि हंग एसेंबली क्या होती है। इनकी नौबत क्यों आ सकती है और उसके बाद क्या हो सकता है।
किसी भी दल को सरकार बनाने के लिए 116 सीटें चाहिए होंगी
किसी भी पार्टी को सरकार बनाने के लिए एक मैजिक फिगर चाहिए होता है। हम फिलहाल मध्यप्रदेश के संदर्भ में इसे समझते हैं। प्रदेश में विधानसभा की कुल सीटें हैं 230। जीत के लिए किसी भी दल को चाहिए 50 प्रतिशत प्लस एक सीट यानी मप्र में जिसके पास 116 सीटें होंगी वो सरकार बनाने का दावेदार आसानी से बन जाएगा। कांग्रेस या बीजेपी दोनों ही ये आंकड़ा हासिल नहीं कर पाते हैं तो अपने दम पर सरकार नहीं बना सकेंगे। ऐसे में हालात बनेंगे हंग एसेंबली के। इसकी वजह है कि मैदान में इस बार तीसरे मोर्चे के नाम पर बहुत सी पार्टियां मैदान में हैं। सपा-बसपा के अलावा आम आदमी पार्टी और जयस ने भी किस्मत आजमाई है। दिलचस्प बात ये है कि इन सभी दलों में अधिकांश चेहरे वो हैं जो बीजेपी या कांग्रेस के बागी प्रत्याशी हैं। ये हाल काफी कुछ साल 2018 के चुनाव जैसा ही है। तब कांग्रेस ने 114 सीटें जीतीं और बीजेपी ने 109 सीटें जीतीं। बाकी सीटें बसपा और अन्य के खाते में गईं। कांग्रेस बहुमत के ज्यादा नजदीक थी। बसपा और निर्दलीयों की मदद से सरकार तो बना ली, लेकिन विधायक इतने कम थे कि 15 साल बाद सत्ता में लौटी सरकार सिर्फ 15 महीने में गिर गई और बीजेपी 127 विधायकों के आंकड़े के साथ दमदार बनती चली गई।
चुनावी सर्वे बीजेपी तो कभी कांग्रेस की जीत की ओर कर रहे इशारा
इस बार भी हालात ऐसे ही बनें तो कुर्सी की दौड़ जीतने के लिए उन्हीं बागियों को गले लगाना होगा जिनका टिकट काटकर पार्टियों ने पलटकर भी नहीं देखा। नतीजों का दिन जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है। हालात लगातार बदल रहे हैं। चुनावी सर्वे कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस की जीत की तरफ इशारा करते हैं। कभी त्रिशंकु सरकार बनने के आसार भी नजर आते हैं। ऐसा होता है तो त्रिकोणीय संघर्ष वाली 24 सीटें ये फैसला करेंगी कि सरकार किसकी बनें।
- होशंगाबाद विधानसभा सीट पर बीजेपी के असंतुष्टों ने पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ता भगवती चौरे को खड़ा किया है।
- गोटेगांव विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने पहले शेखर चौधरी को टिकट दिया, बाद में उनका टिकट काटकर एनपी प्रजापति को दे दिया, इससे नाराज शेखर चौधरी मैदान में उतर गए।
- सिवनी मालवा सीट पर कांग्रेस के बागी प्रत्याशी ओम रघुवंशी मैदान में कूद गए।
- चाचौड़ा सीट पर बीजेपी की बागी ममता मीना ने आप से उतरकर बीजेपी की परेशानी बढ़ा दी है।
- महू विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के पूर्व विधायक अंतर सिंह दरबार निर्दलीय चुनाव लड़े।
- बुरहानपुर चुनाव चतुष्कोणीय मुकाबले में फंसा। बीजेपी पूर्व मंत्री अर्चना चिटनिस तो कांग्रेस ने सुरेन्द्र शेरा को टिकट दिया। इधर बीजेपी से पूर्व बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष स्व. नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह चौहान निर्दलीय उतरे हैं तो उधर कांग्रेस के बागी नफीस मंशा खान ने एआईएमआईएम से मैदान में है।
- धार में बीजेपी से बागी राजीव यादव तो कांग्रेस से कुलदीप सिंह बुंदेला निर्दलीय चुनाव लड़े।
- बड़नगर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस ने राजेंद्र सिंह सोलंकी का टिकट बदलकर विधायक मुरली मोरवाल को प्रत्याशी बनाया तो नाराज सोलंकी निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए।
- रतलाम जिले की आलोट विधानसभा से कांग्रेस के बागी प्रेमचंद गुडडू ने मैदान में उतरकर त्रिकोणीय मुकाबला कर दिया है।
- विंध्य अंचल की सीधी सीट से विधायक केदारनाथ शुक्ला का बीजेपी से टिकट कट जाने के कारण वह निर्दलीय मैदान में हैं।
- चुरहट सीट पर भी पूर्व सांसद गोविंद सिंह के पुत्र अनेंद्र मिश्र राजन ने मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है।
- मैहर में बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी का टिकट कटने के बाद वे अपनी विंध्य जनता पार्टी से कांग्रेस-बीजेपी प्रत्याशियों को टक्कर दे रहे हैं।
- डिंडौरी सीट पर जिला पंचायत अध्यक्ष और पूर्व कांग्रेस नेता रुद्रेश परस्ते ने निर्दलीय मैदान में उतरकर मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है।
- लहार विधानसभा सीट से भाजपा के बागी रसाल सिंह बसपा।
- अटेर से मुन्ना सिंह भदौरिया सपा।
- भिंड विधानसभा सीट से संजीव सिंह कुशवाह बसपा।
- मुरैना विधानसभा सीट से बीजेपी के बागी राकेश रुस्तम सिंह बसपा से चुनाव लड़े।
- मुरैना जिले की सुमावली विधानसभा से कांग्रेस के बागी कुलदीप सिकरवार और दिमनी से बलवीर डंडोतिया बसपा के टिकट पर मैदान में डटे रहे।
- शिवपुरी जिले की पोहरी विधानसभा से कांग्रेस के बागी प्रद्युमन वर्मा बसपा से चुनाव लड़े।
- बुंदेलखंड के जतारा में कांग्रेस से बागी धर्मेंद्र अहिरवार बसपा से उतरे।
- बंडा विधानसभा में बीजेपी के बागी सुधीर यादव ने आप से चुनाव लड़ा।
इन प्रत्याशियों में से आधे भी जीत जाते हैं तो उनकी अनदेखी कर सरकार बनाना नामुमकिन होगा।
दोनों दलों ने शुरू किया प्लान बी पर काम
यही वजह है कि दोनों दलों ने अभी से प्लान बी पर काम शुरू कर दिया है। जो कल तक फूटी आंख नहीं सुहा रहे थे। उन्हीं बागियों से फिर नजरें मिलाने की कवायदें तेज हो चुकी हैं। ये बात और है कि दोनों ही दल फिलहाल खुलकर ये मानने के लिए तैयार नहीं हैं। इस प्लान बी को एक्टिवेट करना है या नहीं। इसका अंदाजा 3 दिसंबर का दिन ढलते-ढलते हो ही जाएगा।
किस समीकरण से होगा सरकार बनाने का फैसला
मान लेते हैं एक परसेंट हंग एसेंबली की गुंजाइश बन ही गई तो सरकार का फैसला कैसे होगा। क्या बीजेपी के जीते हुए बागी बीजेपी को समर्थन दे देंगे। या, कांग्रेस के जीते हुए बागी कांग्रेस को समर्थन दे देंगे। बसपा सपा और आप से जीते प्रत्याशी किस ओर जाएंगे। इंडिया गठबंधन की लाज रखते हुए सपा और आप कांग्रेस को समर्थन देगी या ताजी रार आड़े आ जाएगी। किस समीकरण से सरकार बनाने का फैसला होगा और क्या-क्या समझौते किए जाएंगे। सवाल तो कई हैं पर ये तय है कि किसी दल को बहुमत नहीं मिला तो जोड़तोड़ से बनने वाली तस्वीर बेहद दिलचस्प होगी।